मेरी ज़िंदग़ी की जो समस्याएं हैं, जो तक़लीफ़ें हैं उनके पीछे धर्म/ब्राह्मणवाद और फ़िल्मों का बड़ा हाथ है। मेरे पैदा होने से पहले ही धर्म ने मेरी ज़िंदग़ी को तय करना शुरु कर दिया था, बिना मेरी सहमति के। बाद में मुझे समझ में आया कि यही काम फ़िल्में भी करतीं रहीं हैं और उन्हें भी मेरी सहमति-असहमति की बहुत चिंता नहीं है। ऐसे में ज़रुरी हो जाता है कि मैं भी धर्म और फ़िल्मों पर ख़ुलकर अपने विचार व्यक्त करुं।
(ये प्रतिक्रियाएं/समीक्षाएं साहित्य या पत्रकारिता के किसी पारंपरिक ढांचे के अनुसार नहीं होंगीं। जिस फ़िल्म पर जितना और जैसा कहना ज़रुरी लगेगा, कह दिया जाएगा । (आप कुछ कहना चाहें तो आपका स्वागत है।)