हमारे यहां ‘पराग’ और ‘चंपक’ जैसी बाल पत्रिकाएं आतीं थीं। कभी-कभार ‘लोटपोट’, ‘दीवाना’ वगैरह कहीं से मिल जाएं तो पढ़ लेते थे। ज़्यादातर दूसरे बच्चे ‘नंदन’ और ‘चंदामामा’ पढ़ते थे। ये दोनों ख़ूब बिकतीं थीं। मगर मैं नहीं पढ़ पाता था क्योंकि इनमें अकसर सभी कहानियां राजा-रानियों या भूत-प्रेतों की होती थीं।
‘बाहुबलि’ देखी तो लगा कि वहीं ‘चंदामामा’ और ‘नंदन’ के ज़माने में पहुंच गया हूं। इंटरवल के थोड़ी देर बाद तक जैसे-तैसी देखी फिर छोड़कर अपने काम में लग गया।
-संजय ग्रोवर
08-05-2017
‘बाहुबलि’ देखी तो लगा कि वहीं ‘चंदामामा’ और ‘नंदन’ के ज़माने में पहुंच गया हूं। इंटरवल के थोड़ी देर बाद तक जैसे-तैसी देखी फिर छोड़कर अपने काम में लग गया।
-संजय ग्रोवर
08-05-2017